झूला एक याद

इस तस्वीर को देखकर बचपन की याद ताजा हो जाती है। बचपन में सावन का मौसम आते ही पेड़ो पर झूल डाल दिया जाता था। और मोहल्ले के बच्चे झूला झूलने के लिए आ जाया करते थे। फिर सभी बारी बारी से झूला झूलते और सुबह से शाम तक बागो में खेलते थे। सुबह की ठंडी ताज़ी हवा पूरे शरीर को ताज़गी प्रदान करती थी जिससे शरीर तंदरुस्त और मस्तिष्क तनाव मुक्त रहता।
आज की इस भागदौड़ वाली जिन्दगी में ये सब छूटता जा रहा है।
आउटडोर गेम्स धीरे धीरे हमारी जिन्दगी से दूर होते जा रहे है और उनकी जगह विडियो गेम्स, मोबाइल ने ले ली है।
आज के समय में बच्चे घरो में कैद होकर रह गए है। जिससे उनके स्वस्थ पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
आज के इस दौर में मोबाइल फ़ोन्स की वजह से बच्चो के साथ साथ बड़ो में भी चिड़चिड़ापन आ गया है।
उदहारण के लिए अगर कोई आदमी मोबाइल चला रहा है और आप उससे किसी काम के लिए कहते हो तो वो आप से कहेगा थोड़ी देर बाद कर दूँगा आप फिर से कहते हो तो वो आप पर चिल्लायेगा।
जब भी में इस तस्वीर को देखता हूं तो बचपन की यादें ताज़ा हो जाती है और शरीर में एक ताज़गी से भर जाती है।

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